Friday, 11 July 2014

Love (E)

जख्म जब मेरे सीने के भर जायेंगें;
आसूं भी मोती बन कर बिखर जायेंगें;
ये मत पूछना किस-किस ने धोखा दिया;
वर्ना कुछ अपनों के चेहरे उतर जायेंगें।
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एक अजीब सा मंजर नज़र आता है;
हर एक आँसूं समंदर नज़र आता है;
कहाँ रखूं मैं शीशे सा दिल अपना;
हर किसी के हाथ मैं पत्थर नज़र आता है।
 
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मैंने अपनी हर एक सांस तुम्हारी गुलाम कर रखी है;
लोगों में ये ज़िन्दगी बदनाम कर रखी है;
अब ये आइना भी क्या काम का मेरे;
मैंने तो अपनी परछाई भी तुम्हारे नाम कर रखी है।

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क्या तारीफ़ करूँ आपकी बात की;
हर लफ्ज़ में जैसे खुशबू हो ग़ुलाब की;
रब ने दिया है इतना प्यारा सनम;
हर दिन तमन्ना रहती है मुलाक़ात की।

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होठों पर मोहब्बत के फ़साने नहीं आते;
साहिल पर समंदर के खजाने नहीं आते;
पलकें भी चमक उठती हैं सोते हुए हमारी;
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते।

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दर्द है दिल में पर इसका एहसास नहीं होता;
रोता है दिल जब वो पास नहीं होता;
बरबाद हो गए हम उनकी मोहब्बत में;
और वो कहते हैं कि इस तरह प्यार नहीं होता।

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ना मिलता गम तो बर्बादी के अफसाने कहाँ जाते;
दुनिया अगर होती चमन तो वीराने कहाँ जाते;
चलो अच्छा हुआ अपनों में कोई ग़ैर तो निकला;
सभी अगर अपने होते तो बेगाने कहाँ जाते।

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आज फिर तेरी याद आयी बारिश को देख कर;
दिल पे ज़ोर न रहा अपनी बेबसी को देख कर;
रोये इस कदर तेरी याद में;
कि बारिश भी थम गयी मेरी बारिश को देख कर।
 
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हर सितम सह कर कितने ग़म छिपाये हमने;
तेरी खातिर हर दिन आँसू बहाये हमने;
तू छोड़ गया जहाँ हमें राहों में अकेला;
बस तेरे दिए ज़ख्म हर एक से छिपाए हमने।

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वो बात क्या करूँ जिसकी खबर ही न हो;
वो दुआ क्या करूँ जिसमे असर ही न हो;
कैसे कह दूँ आपको लग जाये मेरी भी उम्र;
क्या पता अगले पल मेरी उम्र ही न हो।

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